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Sandhya Jhuli Ae Cha - Uttarakhandi Evening Song – Lyrics (Hindi and English)
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- Kanak Das
Lyrics in Hindi
ये पूरबि को दिना
ये पशचीमा न्है गो छ
ये नीलकण्ठा हिमालया हो
ये संध्या झूली ऐ छ
ये शिवा का कैलाशा शम्भो
ये संध्या झूली ऐ छ
भगिवाना नीलकण्ठा हिमाला
अब संध्या झूली गे छ
भगिवाना धौलीगंगा का छाला
घर कैं जाणि ब्याल है गे
रू फुला हो
घाम मुखडी लाल है गे
रू फुला हो
पंछी उड़ि डाल भै गे
रू फुला हो
घर कैं जाणि ब्यालि है गे
रू फुला हो
हरी हरद्वार बटि
पुजिगे नैनीताला
कुमाउं का फाट बटि
जै पूजि गढ़वाला
अब संध्या झुकि गे छ
भगिवाना बद्रीनाथा विशाला
केदारनाथ बटि
लौटि संध्या कां गे
जाँ पड़ि छू ह्यूं बर्फा
लौटि संध्या वां गे
अब संध्या लुकि गे छ
भगिवाना मानसरोवर का ताला
Lyrics in English
ye poorabi ko dina
ye pashchima nhai go chha
ye Neelkantha Himalaya ho
ye sandhya jhoole ai chha
ye Shiva ka Kailasha Shambho
ye sandhya jhoole ai chha
Bhagwana Neelkantha Himala
ab sandhya jhoole ge chha
Bhagwana Dhauliganga ka chhaala
ghar kai jaani byaal hai ge
roo phula ho
ghaam mukhadi laal hai ge
roo phula ho
panchhi udi daal bhai ge
roo phula ho
ghar kai jaani byaali hai ge
roo phula ho
Hari Hardwar bati
pujige Nainital
Kumaon ka phaat bati
jai puji Garhwala
ab sandhya jhuki ge chha
Bhagwana Badrinatha Vishala
Kedarnath bati
lauti sandhya kaan ge
jaan pad chhu hyun barfa
lauti sandhya waan ge
ab sandhya luki ge chha
Bhagwana Mansarovar ka taala
Lyrics meaning in Hindi
पूरब से दिन
पश्चिम की ओर चला गया है
नीलकंठ हिमालय में
संध्या झूलते हुए आ गयी है
शिव-शम्भू के कैलाश में
संध्या झूलते हुए आ गयी है
भगवान नीलकंठ हिमालय में
अब संध्या छा गयी है
भगवान धौलीगंगा के किनारे
घर लौटने को ज्यादा शाम हो चुकी है
बहुत सुहाना पल है
सूर्य का मुख लाल हो चुका है
बहुत सुहाना पल है
उड़ते हुए पंछी डालियों पर बैठ चुके हैं
बहुत सुहाना पल है
घर लौटने को अब ज्यादा शाम हो चुकी है
बहुत सुहाना पल है
हरी के हरिद्वार से
नैनीताल पहुँच चुकी है
कुमाऊं के द्वार से
गढ़वाल पहुँच चुकी है
अब संध्या झुक गयी है
भगवान बद्री-विशाल पर
केदारनाथ से
लौट कर संध्या कहाँ गई
जहाँ बर्फ गिरी है
लौट कर संध्या वहां चली गई है
अब संध्या छुप गयी है
भगवान मानसरोवर के ताल में
Lyrics meanins in English
From the east, The day journeys to the west, At Neelkanth in the Himalayas, The evening arrives, gently swaying, At Shiva-Shambhu's Kailash.
The evening arrives, gently swaying, At Lord Neelkanth in the Himalayas, Now the dusk has settled, By the sacred Dhauli Ganga's shore.
It's grown quite late to return home now, A truly enchanting moment, The sun's face glows crimson, A truly enchanting moment, Birds in flight have perched on branches, A truly enchanting moment, It's grown quite late to return home now, A truly enchanting moment.
From Hari's holy Haridwar, It reaches serene Nainital, Through Kumaon's gates, It finds Garhwal's embrace, Now the evening bows low, Upon Lord Badri-Vishal.
Returning from Kedarnath, Where has the evening wandered? Where snowflakes fall gently, The evening has softly settled, Now the dusk has concealed itself, In the lake of Lord Manasarovar.